मानसिक स्वास्थ्य की साइलेंट महामारी – क्या हमारा समाज ‘ठीक’ है? : डॉ. द्विवेदी की अपील | युवा क्यों हो रहे हैं डिप्रेशन का शिकार?

नमस्ते! मैं, डॉ. अभिषेक द्विवेदी, निदेशक, मंथन हॉस्पिटल, प्रयागराज, आज आपसे सीधे दिल की बात करने आया हूँ—और दिमाग की भी!

आज, 10 अक्टूबर, को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जा रहा है। पर क्या हम इसे सच में मना रहे हैं, या सिर्फ एक तारीख मानकर गुज़ार रहे हैं? जिस तेज़ रफ़्तार दुनिया में हम जी रहे हैं, जहाँ हर तरफ अनिश्चितता, तनाव और अकेलेपन का शोर है, वहाँ मुझे लगता है कि आज सबसे ज़्यादा ज़रूरत हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर बात करने की है।

अक्सर मुझे लोग कहते हैं, “डॉक्टर साहब, आजकल तो हर कोई ‘मेंटल’ सा हो गया है!” यह बात हँसी में कही जाती है, पर इसके पीछे एक गहरी सच्चाई छिपी है। क्या हमारा समाज वाकई ‘ठीक’ है? क्या हम उस ‘साइलेंट महामारी’ को देख पा रहे हैं, जो भीतर ही भीतर हमारे युवाओं और परिवारों को खोखला कर रही है? आज, जब दुनिया मानवीय आपातकालों (humanitarian emergencies) का सामना कर रही है, तो विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2025 का थीम “Mental health in humanitarian emergencies” हमें याद दिलाता है कि सबसे पहले हमें अपने मन को संभालना होगा।

क्यों आज हर कोई ‘मेंटल’ महसूस कर रहा है?

एक समय था जब मानसिक समस्याओं पर बात करना ‘पागलपन’ माना जाता था। आज भी बहुत से लोग इसे कलंक (Stigma) समझते हैं। लेकिन सत्य यह है कि मानसिक स्वास्थ्य, हमारे शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है, और इसका बिगड़ना किसी भी बीमारी जितना ही वास्तविक है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार:

  • दुनिया भर में हर 8 में से 1 व्यक्ति किसी न किसी मानसिक विकार (Mental Disorder) से जूझ रहा है।
  • डिप्रेशन (Depression) दुनिया भर में विकलांगता (Disability) का एक प्रमुख कारण है।
  • किशोरों और युवाओं में (15-29 वर्ष) आत्महत्या मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है।

ये आँकड़े केवल संख्याएँ नहीं हैं, ये हमारे समाज में बढ़ती हुई मानसिक अशांति की भयावह तस्वीर दिखाते हैं।

मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने के 5 प्रमुख कारण : एक चक्रव्यूह

आज के समय में, मानसिक स्वास्थ्य के बिगड़ने के कई कारण हैं, जो एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं:

जीवनशैली का तनाव और प्रतिस्पर्धा:

  • युवाओं में : करियर का दबाव, परीक्षा का तनाव, आर्थिक चिंताएँ, और ‘परफेक्ट’ दिखने की होड़।
  • वयस्कों में : वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी, आर्थिक असुरक्षा, और पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ। यह निरंतर तनाव कोर्टिसोल जैसे स्ट्रेस हॉर्मोन बढ़ाता है, जो चिंता और डिप्रेशन को जन्म देता है।

डिजिटल दुनिया का जाल और अकेलापन:

  • सोशल मीडिया पर लगातार दूसरों से अपनी तुलना करना, ‘फेक’ खुशियाँ देखना और वर्चुअल दुनिया में खोए रहना, वास्तविक दुनिया में अकेलेपन और असुरक्षा की भावना को बढ़ाता है।

सामाजिक अलगाव और सहायता की कमी :

  • बदलते सामाजिक ढाँचे में परिवार और दोस्तों से भावनात्मक जुड़ाव कम हो रहा है। मानसिक समस्या होने पर भी लोग मदद मांगने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि समाज उन्हें ‘कमज़ोर’ समझेगा।

शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं का प्रभाव :

  • किसी पुरानी शारीरिक बीमारी (जैसे मधुमेह, हृदय रोग) से जूझने वाले लोगों में डिप्रेशन और एंग्जायटी का खतरा दोगुना होता है। बीमारी का दर्द और उसके जीवन पर पड़ने वाले असर से मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ सकता है।

बदलते वैश्विक हालात:

  • महामारी, आर्थिक मंदी, प्राकृतिक आपदाएँ और वैश्विक संघर्ष (जैसा कि इस वर्ष का थीम बताता है) लोगों में सामूहिक भय, अनिश्चितता और सदमे का कारण बन रहे हैं, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का गहरा संबंध : अलग नहीं, एक हैं!

हमारा शरीर और मन अलग-अलग नहीं हैं। डॉ. अभिषेक द्विवेदी के तौर पर मैं अक्सर कहता हूँ, “आपका मन बीमार होगा तो शरीर भी बीमार पड़ेगा, और शरीर बीमार होगा तो मन भी शांत नहीं रह पाएगा।”

  • डिप्रेशन : डिप्रेशन के कारण भूख कम या ज़्यादा लग सकती है, नींद का पैटर्न बिगड़ सकता है, और व्यक्ति में थकान बनी रह सकती है। यह हृदय रोग और मधुमेह के जोखिम को भी बढ़ाता है।
  • चिंता (Anxiety) : अत्यधिक चिंता के कारण पेट में दर्द, दस्त, सिरदर्द, दिल की धड़कन तेज़ होना और मांसपेशियों में तनाव जैसी शारीरिक समस्याएँ हो सकती हैं।
  • लंबे समय तक का तनाव : यह इम्यूनिटी को कमज़ोर करता है, जिससे आप आसानी से बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। यह रक्तचाप और शुगर लेवल को भी प्रभावित करता है।

मदद कैसे लें और अपनी देखभाल कैसे करें : डॉ. द्विवेदी के 5 संजीवनी सूत्र

इस ‘साइलेंट महामारी’ से लड़ने के लिए हमें अपनी सोच और आदतों में बदलाव लाना होगा। मेरा यह मानना है कि मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल कोई ‘लक्ज़री’ नहीं, बल्कि ‘ज़रूरत’ है।

  1. खुलकर बात करें (Talk Openly) : अपने भरोसेमंद दोस्त, परिवार के सदस्य या किसी पेशेवर (डॉक्टर/काउंसलर) से अपनी भावनाओं को साझा करें। याद रखें, मदद मांगना कमज़ोरी नहीं, बल्कि हिम्मत की निशानी है।
  2. सीमाएँ निर्धारित करें (Set Boundaries) : काम के घंटे, सोशल मीडिया का उपयोग और नकारात्मक ख़बरों के सेवन पर नियंत्रण रखें। अपने लिए ‘मी टाइम’ ज़रूर निकालें।
  3. नियमित दिनचर्या अपनाएँ (Routine is Key) : पर्याप्त नींद लें (7-8 घंटे), संतुलित आहार लें और रोज़ाना शारीरिक व्यायाम करें। यह आपके मूड और ऊर्जा के स्तर को स्थिर रखता है।
  4. दिमाग को शांत रखें (Mindfulness & Relaxation) : योग, ध्यान, संगीत सुनना या कोई ऐसा शौक़ अपनाएँ जो आपके मन को शांति दे। प्रकृति के करीब समय बिताना भी बहुत फ़ायदेमंद है।
  5. प्रोफेशनल हेल्प लें (Seek Professional Help) : अगर आपको लगता है कि आपकी चिंता, उदासी या तनाव आपके दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहा है, तो बिना झिझक किसी मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक से संपर्क करें। मंथन हॉस्पिटल में हमारी टीम मानसिक स्वास्थ्य सहायता के लिए हमेशा उपलब्ध है।

आज, विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर, आइए हम सब मिलकर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कलंक को ख़त्म करने का संकल्प लें। एक-दूसरे का साथ दें, सुनें, समझें और एक स्वस्थ समाज का निर्माण करें—क्योंकि स्वस्थ मन ही स्वस्थ शरीर और स्वस्थ भविष्य की कुंजी है।

Disclaimer: यह जानकारी केवल जागरूकता के उद्देश्य से दी गई है और किसी भी चिकित्सकीय सलाह का विकल्प नहीं है। यदि आप या आपका कोई परिचित मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा है, तो कृपया किसी योग्य पेशेवर से परामर्श करें।