अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस – 2025 : संवाद से ही शुरू होता है सही इलाज!

नमस्ते! मैं, डॉ. अभिषेक द्विवेदी, निदेशक, मंथन हॉस्पिटल, आज आप सभी से एक बेहद खास और संवेदनशील विषय पर बात करना चाहता हूँ।

आज, 23 सितंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय सांकेतिक भाषा दिवस’ (International Day of Sign Languages) मनाया जाता है। अक्सर हम इसे एक दिन का उत्सव मानकर भूल जाते हैं, लेकिन मेरे लिए और मेरे अस्पताल के लिए, यह दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि समावेश और सम्मान के उस सिद्धांत का प्रतीक है, जिस पर हमारा स्वास्थ्य सेवा का पूरा ढाँचा खड़ा है।

एक डॉक्टर के तौर पर, मेरा मानना है कि इलाज की शुरुआत दवा से नहीं, बल्कि संवाद से होती है। जब एक मरीज़ अपनी परेशानी डॉक्टर को समझा पाता है, तभी सही निदान और सही उपचार की नींव रखी जाती है। लेकिन सोचिए, उन लोगों के लिए यह कितना मुश्किल होगा, जो सुन नहीं सकते और बोल नहीं सकते? उनके लिए सांकेतिक भाषा, सिर्फ एक भाषा नहीं, बल्कि उनकी आवाज़, उनकी पहचान और उनके आत्म-सम्मान का आधार है।


स्वास्थ्य सेवा में सांकेतिक भाषा का महत्व

कई बार हमने देखा है कि जब एक श्रवण बाधित व्यक्ति अस्पताल आता है, तो वह अपनी बीमारी, दर्द या बेचैनी को ठीक से बता नहीं पाता। संवाद की यह कमी न केवल उनके लिए निराशाजनक होती है, बल्कि यह गलत निदान या देरी से इलाज का कारण भी बन सकती है।

सांकेतिक भाषा का महत्व सिर्फ इतना नहीं है कि यह संवाद को संभव बनाती है, बल्कि यह एक मरीज़ और डॉक्टर के बीच भरोसे का पुल बनाती है। जब एक डॉक्टर सांकेतिक भाषा का उपयोग करता है, तो यह मरीज़ को यह एहसास दिलाता है कि उसकी बात सुनी जा रही है, उसकी परेशानी समझी जा रही है, और वह सुरक्षित हाथों में है। यह आत्मविश्वास ही मरीज़ के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।

हमारे लिए, यह सिर्फ एक मानवीय ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि एक पेशेवर आवश्यकता भी है। एक डॉक्टर का कर्तव्य है कि वह हर मरीज़ की ज़रूरत को समझे, और भाषा की बाधा को एक रुकावट न बनने दे।


जागरूकता क्यों ज़रूरी है?

आज का यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि हमारे समाज में अभी भी सांकेतिक भाषा के प्रति जागरूकता की बहुत कमी है। अक्सर हम सांकेतिक भाषा को केवल मूक-बधिर लोगों की भाषा मानते हैं, जबकि यह एक समृद्ध और पूरी तरह से विकसित भाषा है, जिसका अपना व्याकरण और संस्कृति है।

अगर हम सब कुछ साधारण सांकेतिक शब्द सीख लें, जैसे:

  • “दर्द कहाँ है?”
  • “आपको कैसा महसूस हो रहा है?”
  • “डरिए मत।”

तो सोचिए, किसी आपात स्थिति में या सामान्य बातचीत में भी हम कितनी मदद कर सकते हैं! ये कुछ शब्द एक अजनबी के लिए जीवन बचाने का जरिया बन सकते हैं।


मंथन हॉस्पिटल की प्रतिबद्धता

मंथन हॉस्पिटल में हम समावेशी स्वास्थ्य सेवा के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम समझते हैं कि हर मरीज़, चाहे वह कोई भी हो, समान सम्मान और देखभाल का हकदार है। हम अपने स्टाफ को संवेदनशील बनाने और सांकेतिक भाषा के कुछ बुनियादी शब्दों को सीखने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, ताकि कोई भी मरीज़ संवाद की कमी के कारण अधूरा महसूस न करे।

हमारा मानना है कि एक स्वस्थ समाज तभी बन सकता है जब हम सभी, चाहे हमारी भाषा, क्षमता या पृष्ठभूमि कुछ भी हो, एक-दूसरे को समझें और स्वीकार करें।

सांकेतिक भाषा सिर्फ हाथों की गति नहीं है, यह दिल से दिल का संवाद है। आइए, इस अंतरराष्ट्रीय दिवस पर हम सब मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करने का संकल्प लें, जहाँ हर आवाज़, हर संकेत, और हर भावना को सम्मान और जगह मिले।

शुभकामनाओं सहित,

डॉ. अभिषेक द्विवेदी निदेशक, मंथन हॉस्पिटल